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हर रूप में नारी

हर रूप में नारी

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कोमल नाजुक बनी हुई है

नारी में नजाकत है,

बच्ची की अल्लहड़ता है।

यौवन की दहलीज पर खड़ी,

भाई की लाज

पिता की इज्जत है,

मां की छाया प्रतिरूप है।

उस हर वक्त हर जगह संभलना होता है।

सहनशक्ति, संस्कार , अनुशासित,

उसे पग पग पर इसे निभाना होता है।

इसलिए वो नारी है

बच्चे को जन्म देने के बाद मां का रूप,

ईश्वर का दूसरा रूप बना देती है।

आज हर जगह नारी अपना वजूद रख रही।

निरंतर अपनी शक्ति को अपना ज्ञान बना रही

नारी तुम शक्ति हो तुम प्यार हो तुम श्रद्धा हो।



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