विरह वेदना
विरह वेदना
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रंगों में रंग छुप गया
मेरा प्रिय मुझसे
बिछड़ गया
ना जाने कौन से
ओट में
मेरा हमसफ़र बहुत
दूर चला गया
फागुन मेरा विरह
वेदना बन गया
बिन रंगी मैं फागुन
निकल गया
ना जाने मैं कैसी
बुत बन खड़ी हूं
रंग मुझे ना
कोई रंग पाया
अब तो रंगों ने
रंगों से पूछा
लग जाऊं तुम्हें
मुझसे भी पूछा
कुछ बोल ना पाई
मैं अब
आँखो में डर
दर्द सब है
क्या करिएगा "नीर"
रंग बिना दुनिया नहीं
कौन सा रंग लूं मैं पिया
तेरे बिन रश्मि मैं
सतरंगी नहीं