मजबुर
मजबुर
आज मजबूर हूं,
मजबुर को शोहरत ना दीजिए
आज भूखी हूं,
उदर खाली, मजबुर हूं
दाने दाने कोमजबूर हूं।
तुम शोहरत के लिए
मेरे आंसू मत दिखाइए
आज मजबूर हूं,
मजबुर को शोहरत ना दीजिए
मेरे पैबंद लगे कपड़े
दुनिया को ना दिखाइए
आज घर लूट गया तिमिर छा गया
थरथराते सूखे लब,दुनिया को ना दिखाइए
मुझे पता है। तस्वीरों का शौक है आपको
अपने शौक में मुझे जिल्लत ना दीजिए
क्यों ? अभी भी दंभ गया नहीं
मौत सामने खड़ी, मुस्कुरा रही
गर चिता में जल जाऊँ कल
मेरे चिता में मिट्टी ना दीजिएगा
मुझे चैन से विदा होने दीजिए
मजबुर हूं,
कोई ना हो वहां
मजबूर को शोहरत ना दीजिए।