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Reetu Devi

Tragedy

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Reetu Devi

Tragedy

लगता है डर

लगता है डर

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मनमीत बनने से पहले

कांपता है जिगर,

मोहब्बत करने से 

लगता है डर।

कहीं काटी न जाऊं

टुकड़ों में 

फिर फेंकी न जाऊं

जंगल नदी-नहरों में 

कहीं किया न जाए

खुशियों के मर्दन 

सदा के लिए सुलाया जाए

दबाकर मेरी नाजुक गर्दन।

मनमीत बनने से पहले

कांपता है जिगर,

मोहब्बत करने से 

लगता है डर।

सवेरा प्रेम का

न देख पाऊं 

चहकने से पहले गोलियों से

उड़ा न दी जाऊं 

सपनों की उड़ान

भर न पाऊं 

करके भरोसा प्रीत पर 

हैवानियत का शिकार

हो न जाऊं

मनमीत बनने से पहले

कांपता है जिगर,

मोहब्बत करने से 

लगता है डर।

दैहिक शोषण के बाद

किसी खाई में गिरायी न जाऊं 

जाकर प्यार की अंधी गलियों में

सदा के लिए खो न जाऊं 

अस्तित्व मिटा दिया जाए

जलाकर हमसफर का बंधन,

इश्क जहां शोकाकुल हो जाए

सुनकर आह भरे अंतिम क्रंदन।

मनमीत बनने से पहले

कांपता है जिगर,

मोहब्बत करने से

लगता है डर।



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