-पर्यावरण
-पर्यावरण
छेड़-छाड़
लोभी मानव
अंगों से मेरे
करते सदैव
रूको।
संरक्षक
हैं हम
जीवन के तुम्हारे
करते नष्ट
सोचो।
पुकार
हमारी भी
जरा सुन लो
है समय
सम्भलो।
बहाती
अश्क धार
धरोहर प्रकृति के
करूण व्यथा
सुनो।
सवाल
पूछते जीव-जंतु
किया बेघर क्यों
बसाया फिर
करो।