मन का मैल
मन का मैल
रोज बलात्कार होता है उसका
कभी सूनी सड़कों पर,
कभी बस में आते जाते,
घर पर अपनों या
गैरों की नजरों से।
इसलिए नहीं कि कम कपड़े
तन पर होते हैं उसके,
बल्कि मन में मैल
और सोच खुद नग्न होती है
उन हवस के दरिंदों की।
उनकी नजरों में
वो एक देह मात्र है,
और वो कुंठित हैं उस देह से
चाहे वो स्त्री हो
जवानी की तरुणिमा पाए बालिका
या हो अबोध बच्ची।
उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता
वो अक्सर उससे ही पूछेंगे
सौ सवाल
कि छोटे कपड़े
तंग जीन्स क्यूं पहनी थी तुमने ?
इतनी रात घर से
निकलने की वजह क्या थी ?
क्या तुम अकेली थी ?
या थी किसी प्रेमी संग।
हर बार पूछा जाएगा
सिर्फ उससे जैसे वो
बिन आत्मा
सिर्फ एक देह हो
बिन अस्मिता के,
जिसका स्वयं कुछ भी ना हो।
वो बस सुगंधित
स्वेत कोमल मांस है,
चीरने फाड़ने,
मजा लेने या भोगने,
पुरुष की काम वासना
तृप्त करने और
विरोध करने पर
जिंदा जला देने के लिए।