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संजय असवाल "नूतन"

Tragedy

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संजय असवाल "नूतन"

Tragedy

मन का मैल

मन का मैल

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रोज बलात्कार होता है उसका,

कभी सूनी सड़कों पर,

कभी बस में आते जाते,

घर पर अपनों या गैरों की नजरों से।

इसलिए नहीं कि कम कपड़े,


तन पर होते हैं उसके,

बल्कि मन में मैल,

और सोच खुद नग्न होती है,

उन हवस के दरिंदों की।


उनकी नजरों में वो एक देह मात्र है,


और वो कुंठित हैं उस देह से,

चाहे वो स्त्री हो या अबोध बच्ची।

उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता,

वो अक्सर उससे ही पूछेंगे,

कि छोटे कपड़े,

तंग जीन्स क्यूं पहनी थी तुमने ?


इतनी रात घर से निकलने की वजह क्या थी ?

क्या तुम अकेली थी ?

या किसी प्रेमी संग,

हर बार पूछा जाएगा सिर्फ उससे

जैसे तुम सिर्फ एक देह हो,

बिना अस्मिता के,

जिसका स्वयं कुछ भी ना हो।


तुम बस सुगंधित कोमल मांस हो,

चीरने, फाड़ने, मजा लेने,

भोगने, पुरुष की काम वासना

तृप्त करने और विरोध करने पर

जिंदा जला देने के लिए।


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