STORYMIRROR

Asha Pandey 'Taslim'

Tragedy

4  

Asha Pandey 'Taslim'

Tragedy

मसीहा

मसीहा

1 min
386

मुँह तक आते आते

एक दाने पर

हजा़र कत्ल के दाग़ होते हैं,

किसान को पता है

केंचुए की

कुदाल से कट जाने की छटपटाहट,

मेढ़क की बस्ती का उजाड़

पेट फटी लाशों का बिखराव,

जानता है किसान

कीटनाश के छिड़काव से मरे

कीडे़ और मकोडो़ं पर

नहीं होता मातम,

अंगोछा झाड़ता

चला आता है किसान

बिन पछतावे की रोटी

हम सभी के

खूनी मुँह से होते हुए

अंतड़ियों के नरक तक जाती है।

दाना धरती का कातिल

और मसीहा भी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy