झींगुर
झींगुर
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शेर अब विलुप्त हो रहे हैं
रात के सन्नाटे में
जो गुर्राहट है
रंगे सियार की चीख़ है
बारिश आते आते
खो जाते हैं रंगे सियार
रंग गिर जाने के डर से
अपनी अपनी मांद में
सो जाते हैं सियार
झिंगुर आज बोलते हैं
कल भी बोलेंगे
परसों भी बोलेंगे
हर एक मौसम में एक सा सुर
एक सी आवाज़
रुनझुन, छुनछुन, झुनझुन।
