पेड़ की डाली की कुल्हाड़ी से बात
पेड़ की डाली की कुल्हाड़ी से बात
कोई कुल्हाड़ी जब पेड़ को काटती है
पेड़ की डाली कुल्हाड़ी को डांटती है,
तू भी तो मेरे ही जिस्म से बनी है,सखी
फिऱ तू क्यों मेरा ही जिस्म नोच डालती है?
कुल्हाड़ी बोलती है,रे सखी सुन मेरी बात
में तो नादान हूं, इंसानों की गुलाम हूं
जो भी कहना है,इन इंसानों को कह सखी,
में तो सिर्फ़ इन इंसानों का हुक्म मानती हूं।
बड़ी लाचार हो गई वो पेड़ की डाली
आंखों में आंसू भर वो बोली,सुन लाली,
ये आजकल इंसान तो बड़े ही लालची है
बनाकर ख़ुदा भी रो रहा इनकी जाति है।
जिन पेड़ो ने,इन्हें खाना दिया
औऱ रहने का ठिकाना दिया
बीमारी खत्म करने का गाना दिया
जिंदगी चलाने का ऑक्सीजन दिया
फिऱ भी ये इंसान अहसास फ़रामोश निकले हैं
ये अपने स्वार्थ के लिये मुझे यूँही काट डालते हैं।
यह सुनकर कुल्हाड़ी की आंखे भर आई
वो बोली माफ़ कर,हमारी नहीं गद्दारों की माई,
हंसते हंसते डाली ख़ुद ही खुद को मार डालती है
पर इंसानों पर जाते जाते ये भी सवाल दागती है।
हम पेड़ ही न रहेंगे,तुम्हारा क्या होगा
न सुधरे तुम,इस दुनिया नज़ारा क्या होगा
ये बोलते बोलते ही पेड़ की डाली,प्राण त्यागती है।