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Shubhra Varshney

Tragedy

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Shubhra Varshney

Tragedy

कहां गई गौरैया रानी

कहां गई गौरैया रानी

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यादें कितनी तुम्हारे संग बना गई कहानी,

घर आंगन छोड़ कर कहां उड़ गई गौरैया रानी।

नई पीढ़ी अब रह जाएगी वंचित,

न जान पाएगी गौरैया से हमने क्या किया अर्जित।

सीखा तिनके तिनके जोड़ते बनता घर,

कभी आंगन की छत कभी मुंडेर पर।

वो थी वास्तुकार बनाती कलाकृति,

तिनका ला गढती अपना घोंसला लिए सुंदर आकृति।

बन जाती थी वह हर शाम सुहानी,

जब बच्चों की कलरव में मिलती थी तुम्हारी बानी।

अपनी चहचाहट से थी रस घोलती,

वो प्यारी गौरैया जब भी अपना मुंह खोलती।

ऊंची अट्टालिकाओं में कैसे रहे जिंदा,

आधुनिकता ने छीन लिया जब गौरैया का घरौंदा।

वह थी जो फड़फड़ाती हर रोज झरोखे पर,

सूना कर गई मन के आले वह फुर्र होकर।

कैसे रहे वह जिन्दा जब शहर आए मोबाइल टावर,

निकलते विकिरण छीनते इनका जीवन हर पल।

बढ़ गई आबादी और बढ़ गए तापमान,

छीन लिए इनके आशियाने बनाने को अपने पक्के मकान।

कम होते होते हो जाएगी यह विलुप्त प्रजाति,

गर ना हुए जागरूक बचाने को अपनी संस्कृति।

करके छोटी कोशिश बचा लो इनकी जिंदगानी,

रखकर अन्न के दाने और एक कटोरा पानी।



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