परिचय पूनम सिंह मै दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हूँ। हिंदी साहित्य में स्वतंत्र लेखन करती हूँ। कहानी, लघुकथा एवं कविता आदि विधाओं में मेरी लिखित कई रचनाएं भिन्न भिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है।
एक हथेली पर रखे रुपये व दूसरे पर रोटी को चूमते हुए उसके मुँह से निकला " अमृत ! अमृत ! " एक हथेली पर रखे रुपये व दूसरे पर रोटी को चूमते हुए उसके मुँह से निकला " अमृत ! अ...
मैंने... तो.. कहा.. तुम भी तैयारी कर लो, हम जल्द ही कहीं घूमने चलेंगे.. मैंने... तो.. कहा.. तुम भी तैयारी कर लो, हम जल्द ही कहीं घूमने चलेंगे..
अजनबी की ओर व्यंग्य भरी दृष्टि के साथ गर्दन को झटका और आगे निकल गया। अजनबी की ओर व्यंग्य भरी दृष्टि के साथ गर्दन को झटका और आगे निकल गया।
बेहोश पड़ी माँ पर सिर रख कर बिलख बिलख कर रोने लगी। बेहोश पड़ी माँ पर सिर रख कर बिलख बिलख कर रोने लगी।
कैसी परंपरा बाबूजी ...यही तो अब तोड़ना है। कैसी परंपरा बाबूजी ...यही तो अब तोड़ना है।
सर पर उगलता सूरज... एक हाथ से शर्ट उठाए पसीना पोंछ रहा था सर पर उगलता सूरज... एक हाथ से शर्ट उठाए पसीना पोंछ रहा था
कम से कम दीदी की वापसी के आस में उनके जीने की उम्मीद तो बची है।' कम से कम दीदी की वापसी के आस में उनके जीने की उम्मीद तो बची है।'
ये नियम- विरुद्ध है। लड़कियाँ भला कब पुजारी बनी है ये नियम- विरुद्ध है। लड़कियाँ भला कब पुजारी बनी है
कुछ माह पहले ही तो आया हूँ वहाँ से, प्राइवेट नौकरी में छुट्टी भी जल्दी नहीं मिलती कुछ माह पहले ही तो आया हूँ वहाँ से, प्राइवेट नौकरी में छुट्टी भी जल्दी नहीं मिलत...
पति के जाने के बरसों बाद उसने आजादी की हवा में सांस ली थी। पति के जाने के बरसों बाद उसने आजादी की हवा में सांस ली थी।