" हमदर्द "
" हमदर्द "
" माँ आज मैं बहुत खुश हूँ... । दीवाली में तनख्वाह के साथ बोनस भी मिला है। इस बार तू एक वाशिंग मशीन जरूर ले लेना, ...तेरे गठिया की दिक्कत में तुझे थोड़ा आराम मिलेगा।" बेटे ने फैक्ट्री से निकल उत्साहित हो मां को फ़ोन किया।
"...हां ...हां बेटा पहले घर तो आजा... सारी बाते फ़ोन पर ही करेगा क्या।" मां ने खुश होते हुए कहा।
तभी पीछे से कानों को बहरा कर देने वाली जोर की आवाज आई, लगा जैसे बम फटा हो और संवाद विच्छेद हो गया।
"...बेटा.. बे..बे..टा... हे भगवान ये आवाज़ कैसी थी ?"
मांँ ने घबराहट भरे स्वर में कहा।
" उसने तो बताया था कि अब वो पटाखों की फैक्ट्री में काम नहीं करता । फिर ये बम उड़ने जैसी आवाज कहां से आई ।"
वही पास बैठे पति ने उसके हाथ से फोन लेकर बेटे के कुछ दोस्तों को फोन मिलाया तो पता चला पटाखों की फैक्ट्री में आग लगने के कारण बहुत लोग घायल हो गए है और उनका बेटा भी आहत हुआ है।
आनन - फानन में पति - पत्नी विदा हुए।
" ...हर साल कोई ना कोई हादसा। भगवान राम ने कब कहा था की मेरे लौटने की खुशी में पटाखे जलाओ। नादान लोग । ये सरकार भी न जाने कब इस जान लेवा कारोबार पर बैन लगाएगी।" पिता पूरे रास्ते आक्रोश में भुनभुनाते रहे।
किसी प्रकार वो दोनो अस्पताल पहुंचे और बेटे को घायल देख मां की आंखों से झर - झर आंसू बहने लगे ।
"तुने तो कहा था की अब पटाखों की फैक्ट्री में काम नहीं करता । तूने मुझसे झूठ कहा था ना। देख लिया मेरी बात ना मानने का नतीजा। " मां कहे जा रही थी और सुबक भी रही थी । बेटे ने पिता की ओर देखकर कुछ इशारा किया।
"...अरे अब तुम चुप भी रहो, बेटे को भी तो कुछ बोलने दो।" पति ने उसके कंधों पर सहारे का हाथ रखते हुए कहा।
उसने मां की ओर स्नेहिल दृष्टि से देखते हुए मद्धिम स्वर में कहा, " मां.. कभी.. ऐसा.. हुआ.. है कि तेरी बात ना मानी... हो। मैं ..वहां अपने पुराने साथियों से मिलने और उन्हें दीवाली की बधाई देने गया था। उनसे मिलकर ..निकल ही ...रहा था की ...फैक्ट्री में आग लग गई । ...चारों ओर अफरा - तफरी रोने ...चिल्लाने ..कराहने की आवाज में मैं अपने आप को रोक नहीं पाया और मेरे कदम ...अनायास ही ...फैक्ट्री की ओर मुड़ चले..। फिर बेटे ने थोड़ा रुक कर सांसे खींचते हुए कहा।
" ... जिनके साथ ..मैंने सालों.. बिताया था वहां काम करने वाले ...शंकर भईया , रहीम चाचा , विद्या.. दीदी ..ये.. सब मेरे सुख - दुख के साथी.. अपने ही तो थे मां...। फिर उन्हें मौत के मुंह में कैसे छोड़ देता..!
...ये जो चमड़ी जली है इसका घाव तो समय के साथ भर जाएगा, ...किन्तु उनकी मदद ना करता तो, ... ताउम्र आत्मग्लानी के घाव से कभी उबर नहीं पाता मां...।"
बेटे के सर पर वात्सल्य भरे घूमते हाथ जैसे कह रहे थे , 'मुझे तुझ पर गर्व है बेटा।'