"योग्यता'
"योग्यता'
सुनंदा के पति पाँच गाँवों के भव्य पौराणिक सनातन धर्म मंदिर के प्रधान पुजारी थे। उनके स्वर्गवास के पश्चात वह अपनी बेटी को बतौर उनके उत्तराधिकारी के रूप में देखना चाहती थी।
वह अपनी बेटी का हाथ पकड़कर पंडितों की सभा में पहुँच गई और मंदिर के प्रधान पुजारी के लिए बेटी को नामांकित किया। सभासद अवाक रह गया।
सभासद ने आवाज उठाई, "ये नियम- विरुद्ध है। लड़कियाँ भला कब पुजारी बनी है ? क्या हमारे समाज में पुरुष पंडितों की कमी है ?"
"इसका चुनाव विद्वता के आधार पर होना चाहिए, लिंग के आधार पर नहीं। आज लड़कियाँ हमारे देश के हर कार्य क्षेत्र में ज़मीन से आसमां तक छायी हुई हैं। तो फिर मेरी बेटी मुख्य पुजारी क्यों नहीं बन सकती? वैसे मेरे पति की भी आख़िरी इच्छा यही थी। मेरी बेटी ने शैक्षणिक योग्यता देश के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय से प्राप्त की है। यहाँ जितने भी पंडित इस पद के लिये मनोनीत हैं , मेरी बेटी उनके साथ शास्त्रार्थ के लिए भी तैयार है। ...अगर यह पराजित हुईं तो हम पीछे हट जाएंगे।" सुनंदा ने हल्का घूंघट सरकाते हुए पूरी बुलंदी से कहा।
सभा में कानाफूसी शुरू हो गई।
कुछेक पलों की खामोशी के पश्चात एक बुजुर्ग पंडित ने शास्त्रार्थ के लिए हामी भरी।
प्रतिस्पर्धा के दौरान धर्म पर आकर बात अटक गई। "धर्म क्या है"? प्रतिद्वंद्वी ने सर्वधर्म - रक्षा, उसके मूल्यों, अखंडता की विशेषता पर जोर दिया ।
अब सुनंदा की बेटी की बारी थी। उसने कहा," धर्म की एक ही परिभाषा है - इंसानियत! मानवता हमें इंसानियत का पाठ पढ़ाती है और यह सिर्फ हमारे देश तक ही नहीं अपितु वसुधैव कुटुम्बकम् , सौहार्दपूर्ण रिश्ते, एकता, अखंडता को साकार करने हेतु इंसान बनना जरूरी है। और यही धर्म की मूल आत्मा है।"
वहाँ बैठे तमाम धर्म के पुरोधाओं में कुछ पल खुसुरफुसुर हुई ..। अतंत: उसकी बेटी विजेता घोषित की गई।
