Poonam Singh

Inspirational

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Poonam Singh

Inspirational

" अपराजिता "

" अपराजिता "

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" बाबूजी आप यहाँ अंधेरे में और ये इतने पैसे? " उनके हाथों में नोटों की गड्डी देखकर उसने चिंतित भरे स्वर में पूछा । 

"आप मेरी जरूरत का हर समान तो पहले ही दे चुके है फिर ये... ? बोलिए बाबूजी।" उनको खामोश देख उसने कहा, - " सब समझ रही हूं मैं, दहेज दे रहे है ना आप? पर शादी से पहले ही हमारी बात हो गई थी ना कि आप दहेज नहीं देंगे ।" उसने पूरे आक्रोश में उनके हाथ से लगभग पैसे छिनते हुए कहा। 

"यह दहेज थोड़े ही ना है बेटा यह तो हम बस तेरे खर्चे के लिए ....। "

"खर्चा! कैसा खर्चा, हम खुद भी तो नौकरी करते है ना बाबूजी फिर ये सब क्यों... आप भी सुन लीजिये हम बिकेंगे नहीं ...। आपने हमें इतना पढ़ाया - लिखाया पैरों पर खड़ा किया क्या इसलिए कि हमारी हिफाजत और इज्जत प्रतिष्ठा के लिए आपको यह रकम देनी पड़े। "

" अरे बिटिया यह तो परंपरा है। "

" कैसी परंपरा बाबूजी ...यही तो अब तोड़ना है। "

" बिटिया जिद्द नहीं करते । अगर रकम नहीं पहुंची तो बारात दरवाजे से वापस चली जाएगी। और तेरी डोली ...। "

" डोली नहीं उठेगी ना सही, बरात वापस जाने दीजिए। वह अलग समय था जब लड़कियां पढ़ी लिखी नहीं होती थी तो उसके मान - सम्मान और खर्चे के लिए बेटी के साथ दहेज भी दिया करते थे। पर अब जब हम भी उतने ही बड़ी पदवी पर काम करते हैं जितना की वो, फिर ये दहेज क्यों। बल्कि वहीं क्यों नहीं पैसा देते हैं की एक पढ़ी लिखी बहु हमेशा के लिए घर लेकर जा रहे है जो शादी के बाद घर भी संभालेंगी और कमाकर भी लायेंगी।"


" ये क्या कह रही है बिटिया यह बदल नहीं सकता। तुम मान जा देख तेरे पिता की समाज में इज्जत खराब हो जाएगी।" पिता ने प्रार्थना भरे स्वर में कहा। 


"नहीं बाबूजी ये मेरी जिंदगी है और मेरा फैसला है। हमें एक दुधारू गाय की तरह किसी खूंटे से बंधना मंजूर नहीं। "



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