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Poonam Singh

Abstract

2.5  

Poonam Singh

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अमृत

अमृत

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"ये लो दवा की पर्ची और जाओ जाकर अपनी माँ को दवा खरीद कर दे दो। उसके लिए ये अमृत का काम करेगी।"

"अमृत ?"

"हाँ.. अमृत !"

 उसे याद आया, 'माँ कहती थी भूखे के लिए रोटी भी अमृत समान होती है। हाँ .. माँ ठीक हो जाएगी तो फिर से माँ के हाथों से अमृत खाऊँगा।' अपने पेट पर हाथ सहलाते हुए वह भूखा बालक एक हाथ में पर्ची और दूसरे में रुपए दबाए दवाई की दुकान की ओर तेजी से दौड़ा लेकिन पहुँच न सका। बीच रास्ते में ही चक्कर खाकर गिर पड़ा।

" चेहरा देखकर लगता है कई दिनों से भूखा है, शायद रोटी खरीदने ही जा रहा था।" एक ने रुपए वाली मुठ्ठी खोलते हुए कहा।

 पानी के छिड़काव से उसे होश आया और वो उठ बैठा। अपनी हथेली में पैसे की जगह रोटी देखकर वह चिंतित हो उठा।

 "मेरे पैसे ?" कहकर वह इधर उधर नज़रें

घुमाकर ढूँढने का प्रयास करने लगा। 

"उसी पैसे की तो तुम्हें रोटी लाकर दी है बेटा !" भीड़ में से किसी की आवाज़ आई।

 "अब माँ की दवा कैसे खरीदूँगा ?" चिंतित स्वर में उसने भीड़ की ओर नज़रे घुमाते हुए कहा।

 "अरे जिंदा रहोगे तभी तो माँ को दवा दोगे ना ?"

  " बिना दवा के माँ मर जाएगी।" कहते हुए वह रोने लगा।

"लेकिन रोटी नहीं खाई तो अब तुम...!"

 "माँ... माँ ..! " अपने हाथ में पड़ी रोटी और दूसरे हाथ में पर्ची को देख वह सुबक सुबक कर रोने लगा...। 

तभी भीड़ में से एक सज्जन आगे बढ़े और उसकी हथेली पर रुपये रखते हुए बोले ," बेटा ! पहले यह रोटी खा लो। फिर माँ के लिए दवाई भी ले लेना। 

एक हथेली पर रखे रुपये व दूसरे पर रोटी को चूमते हुए उसके मुँह से निकला " अमृत ! अमृत ! "


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