हौसला
हौसला
"क्यों बे लड़के आज तो ठेला लगाकर फल सब्जियाँ बेच रहा है और उस दिन जब हमने तोको कहा था कि आ जाना हमारे दुकान पर काम करने के लिए अच्छे पैसे मिल जाएँगे तब तो तू आया नहीं। अब अचानक ऐसा क्या हो गया ? " उसने अपने हाथों को हवा में लहराते हुए तंज कसा।
सर पर उगलता सूरज... एक हाथ से शर्ट उठाए पसीना पोंछ रहा था और दूसरे हाथ से सब्जियों पर पानी के छींटे मारते हुए ही उसने जवाब दिया.. "माँ बीमार है। खोली का भाड़ा नहीं दिया था इसलिए मकान मालिक ने ही इ ठेला का व्यवस्था कर सड़क पर खड़ा कर दिया। "
" हे हे हे... आ गया ना अपनी औकात पर उस दिन तो तू बड़ा अकड़ के कह रहा था, नहीं हम अभी काम नहीं करेंगे। पढ़- लिख कर बड़ा आदमी बनेंगे और अम्मा को मजदूरी नहीं करने देंगे। बड़ा आया पढ़ने वाला। सारी अक्ल ठिकाने आ गई ना।" उसने मुस्कान छोड़ते हुए व्यंग्यात्मक स्वर में कहा।
" उस दिन मेरी माँ का गुरूर बोल रहा था और आज मेरी मजबूरी।"
उसने सेठ से आँखें मिलाते हुए जवाब दिया।