दीमक
दीमक
" माँ भुर्जी जल रही है। "
"थोड़ा तेल और डाल दे बेटा। "
"तेल का डिब्बा पूरा उल्टा कर दिया अब बूंद भी नहीं बची है। माँ भुर्जी में पानी डाल दूँ जल्दी पक जाएगी।"
"ना बेटा तेरे बाबू फिर खाएंगे नहीं। "
"तूने भात रांध दिया क्या? "
" हाँ कब का और मांड भी बर्तन में ढक कर रख दिया है। तू कब ठीक होगी माँ! मांड भात खाते गला छिल गया है।"
"थोड़ा और सब्र कर ले बेटा जल्दी ठीक होते ही फिर से कोठी में काम पकड़ लेंगे फिर रोज तेरी ही पसंद का खाना, खोखोखो खो।"
"माँ तेरी खांसी तो दिन पर दिन बढ़ती जा रही है। " उसने उदास स्वर में कहा
"तेरे बाबू को तो दवा के पैसे दिये थे लेकिन वो पैसों की शराब पी आता है। इ शराब के चक्कर में कितना घर उजड़ गया फिर भी उसको अक्ल नहीं आ रही। खो खो "
" माँ मैं तेरे लिए दवा ले कर आती हूंँ।" अधपकी भुर्जी चूल्हे पर से उतारकर वह माँ का खुट टटोलने लगी। " माँ तेरे खुट में पैसा बंधा था वह कहाँ गया? "
"कहाँ गया होगा बेटा, तेरे बाबू ने लिया होगा। शराब ने तो इस घर में दीमक लगा दिया। "
सिरहाने से दवा की पर्ची निकाली। और गौर से अक्षरों की ओर देखते हुए कहा, " माँ यह दवा खाने से क्या तू पूरी ठीक हो जाएगी ?"
"डॉक्टर बाबू ने तो यही कहा था बेटा।"
"खच खच खच"
" वहाँ कोने में क्या खोद रही है? ' मां ने गर्दन उचकाकर देखते हुए पूछा।
"माँ यहाँ मिट्टी के नीचे हमने अपने पैसे दबा रखे हैं ताकि बाबू को पता ना चले। यह देख इसमें तेरी दवा तो आ ही जाएगी ना। " उसने पैसों पर लिपटी मिट्टी झाड़ते हुए कहा।
"पर बेटा वह तो तूने अपने गुड़िया की शादी के लिए रखी थी ना। "
"जब तु ठीक हो जाएगी तब फिर से हमें दे देना।"
उसने गौर से पैसों की ओर देखा और दवा की पर्ची को मुट्ठी में दबाकर लगभग दौड़ते हुए बाहर की ओर निकली।
"इतनी तेजी में कहां भागी जा रही है और मुट्ठी में क्या छुपा रखा है? चल दिखा।"और वो उसकी मुट्ठी खोलने का भरसक प्रयास करने लगा।
"कछु नहीं बाबू कछु नहीं हम अपने दोस्तों के साथ खेलने जा रहे हैं। "और उसने कसकर अपनी मुट्ठी बंद करके बाबू के हाथ पर दांत काटा और भागकर बाहर निकल गई।
'जरूर उस मुट्ठी में पैसे होंगे। जायेगी कहां वापस तो यहीं आएगी ना। '
" आज का पकाया है चल जल्दी से दे दे।" और नशे में झूमता हुआ वही पसर गया।
"माँ दवाई ले आए इ लो पानी और जल्दी से गटक लो। "
"अच्छा! तो यही सब लेने गई थी तब तो तू हमसे कह रही थी कि मुट्ठी में कछु नहीं है झूठ बोलती है हमसे पैसा घर में रखी है और हमको सुखी मांड भात खिलाती है। तमाच तमाच ।"
" मत मारो हमारी लाडो को छोड़ दो उसे शराब के नशे में पुरा शहर बर्बाद हो गया फिर भी तुम्हें समझ नहीं खो खो। "
"बड़ी आई समझाने वाली चल हट।" उसने अपने पैरों से उसे धक्का मारते हुए कहा।
" माँ इ ले दवा जल्दी से।"
"एहि दवा लेने गई थी हमसे झूठ बोलकर चल ला इधर।" कहते हुए उसके हाथ से दवा छीन लिया।
"बाबू छोड़ दो बाबू माँ दवा खायेगी तभी तो ठीक होगी ना। " उसने रोते बिलखते हुए कहा। किंतु उसने एक ना सुनी और दवा चूल्हे में झोंक दिया और दोनों को मार कूटकर झूमते हुए बाहर निकल गया।।
बेहोश पड़ी माँ पर सिर रख कर बिलख बिलख कर रोने लगी।
" माँ माँ हम गरीब क्यों है ?"