पांचाली
पांचाली
पांचाली छली गयी,
संपत्ति सा व्यवहार हुआ,
शोषित हुई मली गयी,
सम्मान का संहार हुआ,
राज्य सभा में वह नारी,
केशों से खींची लायी गयी,
नयनों से ही वह महारानी
नोच नोच कर खाई गयी
नोच नोच कर खाई गयी
दिग्गज हुए सब मौन शांत,
सुन्न पड़ा था सारा प्रांत,
पांचो पति थे लज्जित दास,
छूट गयी फिर सारी आस,
बारी बारी सब को पुकारा,
उनकी गरिमा को धिक्कारा,
किसी ने ना हाथ बढ़ाया,
वस्त्र हरण को न रुकवाया,
वस्त्र हरण को न रुकवाया।
नीच पापियों को रोकने
स्वयं फिर भगवान आये,
आज पर भगवान नहीं हैं,
बलात्कार सब सहते जाएं
कुछ दिन तो सबके खून खौलते,
न्याय दिलाओ ये सब हैं बोलते,
न्याय दिलाओ ये सब हैं बोलते
वक्त बीतते जलता खून
ठंडा ही हो जाता है,
मौका पाकर कोई दुशासन
फिर प्रकट हो आता है
वही निर्भया वही हाथरस
फिर दोहराये जाते हैं,
सब आते हैं, चिल्लाते हैं,
वपिस सब सो जाते हैं,
क्यों हवस की ,दरिंदगी की ,
काली वासना छाई है...
क्यों आधुनिक भारत में
संस्कारों की कमी आयी है
संस्कारों की कमी आयी है ???