कैसा यह इम्तिहान
कैसा यह इम्तिहान
तेरी मोहब्बत के नूर को चेहरे पर सजाए
नज़रें बिछाए बैठे थे हम तेरे ही इंतजार में
वो खूबसूरत एहसास जो कभी कह न सके
सोचा था कह देंगे, दिल की हर बात तुम्हें।
पर कैसी ये क़यामत, कैसा यह इम्तिहान
मोहब्बत हमारी हार गई आज किस्मत से
ऐसी क़यामत तो नहीं चाहता था ये दिल
कि ले जाए बहाकर वो अपने साथ तुम्हें।
तुम बिन ख़ामोश हो गए ख़्वाब सारे, तन्हा हो गई ज़िन्दगी
ऐ! खुदा, आखिर कहाँ कमी रह गई थी, मेरी इबादतों में
बस एक साथ ही तो मांगा था, दुनिया की कोई दौलत नहीं
फिर कभी मिल ना सके हम दोबारा, ऐसे जुदा किया तुम्हें।
मिलाया ही क्यों, जब कर ही देना था इस क़दर जुदा हमें
बड़ी शिद्दत से चाहा था हमने, बसाया था अपनी साँसों में
कुछ पल की वो दूरी, बन गई है अब, उम्र भर का इंतजार
चले गए तुम तो सदा के लिए, कहो! कैसे पुकारे हम तुम्हें।
उस जहाँ तक तो धड़कनों की आवाज़ भी नहीं पहुँचती
तुम्हारे सिवा, जीने की वजह ही कहाँ थी इस ज़िन्दगी में
टूट चुकी है हर आस मेरी, टूट रहा इन साँसों का बंधन भी
कितने एहसास, कितनी बातें दिल में, कैसे कहे हम तुम्हें।