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Manju Saini

Tragedy Others

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Manju Saini

Tragedy Others

शीर्षक: हां सच में ही...

शीर्षक: हां सच में ही...

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हां सच में ही...

मैंने मौत को बहुत पास देखा, 

मैंने माँ को मरते हुए देखा,

हिल गई थी मेरे जीवन की रेखा,

अनाथ सी हुई जा रही थी मैं, 

वह अद्भुत और डरावने से क्षण, 

बहुत दुख भरे थे वो पल,

सचमुच प्रलयंकारी था वो क्षण।

हां सच में ही...

मुझे आभास करा देता है वह क्षण,

जीवन की लघुता का, नश्वरता का,

जीवन की क्षणिकता का, 

अक्षुण्ण क्षण भंगुरता का,

और देखते देखते ही माँ से विछोह होने का। 

रूक गयी थी साँसें, एक क्षण के लिए,

लगा जैसे जीवन रुक सा गया मेरा।

हां सच में ही...

टूट गए थे सारे सपने, माँ को जाते देख

हर तरफ धुंधला सा मौसम जैसे हो गया था,

लगा जैसे बिल्कुल दूर हो चुका था,

जीवन की नाव का किनारा,

लगा जैसे सब कुछ हाथ से निकल ही चुका था ,

कि अचानक सभी प्रश्नों के उत्तर मिल गए, 

जीवन के अवशेष मौत ने उगल दिए।

हां सच में ही...

माँ स्मरण हो आयी आज पुनः वह स्नेहमयी गोद,

और बरगद की साया के समान मातृशक्ति का साया,

स्मरण हो आयी पुरानी सभी साथ बितायी बाते

स्मरित हो आयीं माँ के प्यार दुलार की सब रातें,

यादों ने पुनः एक बार झकझोर दिया अंतस्तल को,

कि माँ आज साथ नहीं है, न जाने क्यों..?

ऐसा होता है न जाने क्यों…?

क्यों…?



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