STORYMIRROR

Sangeeta Aggarwal

Tragedy

4  

Sangeeta Aggarwal

Tragedy

औरत

औरत

1 min
193

भोला होना आसान नही तो 

गोरा होना भी कहा मुमकिन है 

पति के लिए आग मे कूद 

खुद को भस्म करना भी कहा मुमकिन है 


सदियों से पति के लिए त्याग करती आई है औरत

कभी अग्नि परीक्षा दी कभी आत्मदाह करती आई है औरत

फिर भी कहा अपनी जगह बना पाई है औरत

हर कदम नई चुनौती मे घिरती आई है औरत


कहने को तो अर्धांगिनी कहलाती आई है औरत

पर बराबर के अधिकार कहाँ पाती है औरत

यूँ तो घर बाहर दोनो ही सम्भालती आई है औरत

फिर भी पुरुषों के बराबर सम्मान कहा पाई है औरत


कहने को नारायणी , चंडी ,दुर्गा का रूप है औरत

पर अपनी अस्मत की रक्षा भी कहा कर पाई है औरत

पुरुष तो पुरुष औरत की भी सताई है यहाँ औरत

औरत द्वारा ही सदियों से जलती आई है औरत।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy