औरत
औरत
भोला होना आसान नही तो
गोरा होना भी कहा मुमकिन है
पति के लिए आग मे कूद
खुद को भस्म करना भी कहा मुमकिन है
सदियों से पति के लिए त्याग करती आई है औरत
कभी अग्नि परीक्षा दी कभी आत्मदाह करती आई है औरत
फिर भी कहा अपनी जगह बना पाई है औरत
हर कदम नई चुनौती मे घिरती आई है औरत
कहने को तो अर्धांगिनी कहलाती आई है औरत
पर बराबर के अधिकार कहाँ पाती है औरत
यूँ तो घर बाहर दोनो ही सम्भालती आई है औरत
फिर भी पुरुषों के बराबर सम्मान कहा पाई है औरत
कहने को नारायणी , चंडी ,दुर्गा का रूप है औरत
पर अपनी अस्मत की रक्षा भी कहा कर पाई है औरत
पुरुष तो पुरुष औरत की भी सताई है यहाँ औरत
औरत द्वारा ही सदियों से जलती आई है औरत।
