प्रकृति
प्रकृति
छेड़ कर इस प्रकृति को हमने
खुद अपने लिए गड्ढा खोद लिया।
पहुंचाया नुकसान इसे इस कदर
सर्वनाश का बीज खुद बो दिया।
कही नदियों ने रौद्र रूप दिखाया है
कहीं पहाड़ दरक कर देखो नीचे आया है
कहीं समुन्द्र मे प्रलय ऐसी देखो आई है
जन जीवन मे देखो कैसी तबाही मचाई है
जो दिया प्रकृति को वही लौट कर आया है
तूने ही तो मानव विनाश का पेड़ लगाया है
नदी नालो को तूने प्लास्टिक से है पाट दिया
अपने स्वार्थ के लिए वृक्षों को भी काट दिया
विज्ञान के गया करीब प्रकृति से दूर हुआ
बड़ी बड़ी इमारते देख तुझे खुद पर गुरुर हुआ।
अब तेरा गुरुर तोड़ने को प्रकृति ने हर बाँध तोड़ दिया
तेरी दी सौगातों को तेरी तरफ ही मोड़ दिया।
क्यो अब देता दोष ईश्वर को क्यो तबाही पर रोता है
बुरे कर्मो का नतीजा हमेशा बुरा ही होता है।
है अगर खुद को बचाना तो अब थोड़ा चेत जा
बहुत हुई बेकद्री अब प्रकृति के थोड़ा करीब आ
भले बना तू कितने महल अटारी न्यारी न्यारी
पर प्रकृति की जरूरत को भी समझ जा
अब तक बस पेड़ काटे है तूने बेशुमार
अब जरा अपने हाथों से दे कुछ पेड़ उगा
प्लास्टिक है प्रकृति का सबसे बड़ा दुश्मन
इसे जितना हो सके जिंदगी से अपनी हटा
वरना एक दिन ऐसा होगा सब तहस नहस हो जायेगा
इस धरा से इंसान का नामो निशा मिट जायेगा
तब जाकर इस धरा का पुनर्जन्म हो पायेगा
विज्ञान मिट जायेगा और प्रकृति का परचम लहराएगा।