Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Sangeeta Aggarwal

Abstract

4  

Sangeeta Aggarwal

Abstract

फितूर

फितूर

1 min
324


फितूर हर उम्र मे होता है जुदा जुदा

कभी खिलोने कभी प्रेम कभी खुदा 


बचपन मे जो वो खिलौनो का पिटारा था

मानो वो दुनिया का अनमोल खजाना था 

वो टूटे खिलौने भी मानो कितने अच्छे थे

क्योकि वो ऐसी उम्र थी जब सब बच्चे थे।

कितना मासूम कितना वो प्यारा था 

कहते है जिसे बचपन वो बहुत न्यारा था।


बचपन बीता आई जवानी हुए सब सयाने

सबके लिए बदल गये खजाने के मायने

अब प्रेम ही सब कुछ मानो नजर आता था

माशूक/ माशूका का साथ हर पल भाता था।

दम नही था भले एक गुलाब खरीदने का 

पर चांद तारे लाने की बातो मे मजा आता था।


वक्त बीता और प्रेम के मायने ही बदल गये

बाल के साथ साथ दाँत भी कुछ कुछ झड़ गये

अब तसव्वुर मे बस खुदा ही खुदा नज़र आता है

कैसे संवारे अपना परलोक यही ख्याल आता है।

इंसान सारी जिंदगी लोभ लालच मे रमा रहता है

और अंत मे बस एक राख का ढेर बच जाता है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract