अभिलाषा
अभिलाषा
उन्मुक्त नील गगन में उड़ते
इधर उधर स्वच्छंद विचरते।
मन में भरते नित नई तरंगें,
आशा के पर है उड़ान भरते।
नन्हे नन्हे है कलाकार हम
कल्पना लोक में रहते है
तोड़ कर ये सारे बंधन
नित नई ऊँचाई गढ़ते है।
परिन्दों सा उड़ते जाना है
कठिनाई से न घबराना है
उन्नति के शिखरों को छूकर
व्योम के पार जाना है।
अवनी पर है पग मेरे पर,
अभिलाषा है नभ को झुकाने की
स्थापित कर के नव प्रतिमान
जग में पहचान बनाने की।