STORYMIRROR

गीता गुप्ता 'मन'

Abstract Inspirational

3  

गीता गुप्ता 'मन'

Abstract Inspirational

अभिलाषा

अभिलाषा

1 min
267

उन्मुक्त नील गगन में उड़ते

इधर उधर स्वच्छंद विचरते।

मन में भरते नित नई तरंगें,

आशा के पर है उड़ान भरते।


नन्हे नन्हे है कलाकार हम

कल्पना लोक में रहते है

तोड़ कर ये सारे बंधन

नित नई ऊँचाई गढ़ते है।


परिन्दों सा उड़ते जाना है

कठिनाई से न घबराना है

उन्नति के शिखरों को छूकर

व्योम के पार जाना है।


अवनी पर है पग मेरे पर,

अभिलाषा है नभ को झुकाने की

स्थापित कर के नव प्रतिमान

जग में पहचान बनाने की।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract