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गीता गुप्ता 'मन'

Abstract

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गीता गुप्ता 'मन'

Abstract

किसकी सुने

किसकी सुने

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अक्सर

होती है

जद्दोजहद

दिल और दिमाग के बीच

दिल जाना चाहता है


सब छोड़ कर

उसके पास

जिसके लिए धड़कनें

बगावत पर आ खड़ी है


जो बन गया है

जीने का सबब

प्रेम के डोर से जिसने

बाँध लिया है

और दिमाग

दुहाई देता है


समाज की

रिश्तों की

मर्यादा की

सम्बन्धों की

सोचता है हजार बार

क्या होगा परिणाम


दिल की सुनूँ या दिमाग की

मन पड़ जाता है

दुविधा में

खून के रिश्ते भी न टूटे

और दिल के रिश्ते भी।


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