STORYMIRROR

गीता गुप्ता 'मन'

Abstract Inspirational

4  

गीता गुप्ता 'मन'

Abstract Inspirational

प्रभात दर्शन

प्रभात दर्शन

1 min
261

नभ रवि किरणों से आच्छादित,

मेघ धवल नीलाभ घनेरे।

प्रमुदित प्रकृति रेत कण चमके,

कलरव पक्षी सुबह सवेरे।


कण कण चमक रहा स्वर्ण सम,

मरुथल में प्रभात का दर्पण।

मृगतृष्णा मन को भरमाये,

एक सत्य है जीवन दर्शन।


समय रेत बन फिसल रहा है,

 कर उपयोग बनाओ जीवन।

प्रकृति नियम से चलती हरदम,

खिलता नियत समय पर उपवन।


प्रभा किरण भरती ऊर्जा है, 

देती है नित नित नवजीवन

गौण रहा जो सदा जगत में,

स्वर्णिम लगता देखो मरुथल।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract