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Dr Hoshiar Singh Yadav Writer

Abstract

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Dr Hoshiar Singh Yadav Writer

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आंखों में क्या छुपा रखा है

आंखों में क्या छुपा रखा है

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आतुर होते देखने को तुम्हें,

बस दर्द का स्वाद चखा है,

मिलने पर होंगी बातें कुछ,

आंखों में क्या छुपा रखा है।


भूल जाते इस संसार को,

इस जगत में क्या रखा है,

आकर्षण तेरी आंखों में ही

आंखों में क्या छुपा रखा है।


आंखों में क्या छुपा रखा है,

देखता ही रह जाता है उन्हें,

कुछ भी याद नहीं आता है,

कर दिया बेकाम का जिन्हें।


आंखों की गहराई मापता,

इनमें नहीं कोई भी वफा है,

बेवफा सी धोखा दे जाती हैं,

आंखों में क्या छुपा रखा है।


ख्वाबों में मैं यूं खो जाता हूं,

पर बदकिस्मत ही पाता हूं,

हमने तो बस ख्वाब रचा है,

आंखों में क्या छुपा रखा है।


धर्म संकट में पड़ जाता हूं,

दरियादिल में डूब जाता हूं,

आंखों में क्या छुपा रखा है,

बस हरदम ख्वाब पाता हूं।


नहीं रहेगा यह जमाना भी,

तेरी झील सी आंखें कहती,

आंखों में क्या छुपा रखा है,

हर ताने एवं तीर को सहती।


तनहाइयां ही जग काफी हैं,

गम मिटाने को यह शाकी है,

आंखों में क्या छुपा रखा है,

तेरे ख्वाब अभी भी बाकी हैं।


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