कामयंत्र का अविष्कार
कामयंत्र का अविष्कार
काश कोई वैज्ञानिक एक ऐसा यंत्र बना दे,
जो काम की प्यास को चुटकियों में बुझा दे।
वैसे तो आजकल बन गए हैं कई यंत्र निराले,
पर उन सब में भी तो एकाकी ही रहते हम सारे।
मैं चाहती एक ऐसा यंत्र जो बन साथी पास आ जाए,
जितना चाहो उतना भोगे और फिर वापस चला जाए।
उस यंत्र की कोई सीमा ना हो और ना हो कोई शर्त,
बस जब उसकी ज़रुरत लगे तब वो ढ़क दे पर्त पर पर्त।
ये काम पिपासा बड़ी निराली जो हर लेती मति सारी,
जब इसकी तपन लगे तन को तो हर काम लगता भारी।
स्त्री हो या पुरुष कोई बच ना पाया इसके बाण से,
और जब ये पूरा हो जाए तब सब घूमे आराम से।
ऐसे कामयंत्र का अविष्कार गर सच में हो जाए मेरे यार,
तब ना मैं तुम्हे बुलाऊँ और ना तुम मुझे बार - बार।
बस तब मैं, मेरा यंत्र और मेरी ज़रूरत की हो जय - जयकार,
हर मनुष्य बन स्वार्थी तब ना करे किसी का प्रेम स्वीकार।।