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नारी

नारी

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नहीं चाहती हूँ मैं ...

मेरे गुणों को कोई नकारे

न ही मुझे कठपुतली बना

मेरे सौन्दर्य को निहारे।

न मुझे कोई बाजार में बेचे

न ही दहेज की अग्नि में फूंके

न करें कोई द्वेष... न कोई बैर।

न छीने मुझसे कोई

मेरी पैदाईश का अधिकार ।

मैं जीना चाहती हूँ

अपने ही मूल्यों पर

स्थापित करना है मुझे

मेरा निज संसार....

यहां भले पुरूष हो मेरी पहचान

पर नहीं मेरा आधार....

बेशक बँधु मैं विवाह के पवित्र बंधन में

पर न जकड़ी जाऊं

मर्यादा व संस्कारों की जकड़न में।

अगर तुम मर्यादा पुरुषोत्तम राम नहीं

तो मुझमें भी ढूंढों अब सीता नहीं ।

नहीं चाहिए मुझे वोह राम

जो छोड़ दे संग ....

सुन किसी एैरे- गैरे का संवाद ।

नहीं समाना है मुझे धरातल में

मुझे जीना है अपनी शर्तों पे।

मुझे चाहिए वोह राम

जो अग्निपरीक्षा से पहले

थाम ले मेरा हाथ...

कहे हम दोनों हैं साथ साथ।

भले अब तुम कहो

निर्लज्ज तुममें चरित्र नहीं

नैतिकता नहीं संस्कार नहीं ।

सच मानों तो ...

अब यह शब्द मुझे विवश करें

इतनी इनकी ....औकात नहीं ।

मैं नारी हूँ ... नारी

मेरे बिना तुम्हारी भी कोई पहचान नहीं ।


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