ख्वाहिश
ख्वाहिश
ना जाने क्यों ....
तुम्हारे शब्दों में मेरे भावों की बू आती है।
सुलग रहे तुम भी उसी आग में ।
जो सिस्टम के प्रति मुझे सुलगाती है।
कुछ तो हल हो इस नामुराद आग का।
मजबूरियों का दामन थामे ।
मेरे बेबस दिल ए लाचार का।
काश ! लग जाए मेरे हाथ।
कोई अलादीन का चिराग।
उड़ा दूं सारे तहखानों की दौलतें।
अमीरों की औकात... ।
कर दूं अमीर सब लाचार बेबसों को।
उड़ा दूं जात पात... ज़हरीले भेदभावों को।
खुशियां हो चहुं ओर.. पीड़ा का हो निदान।
पूजा हो इंसानियत की .....
न हो मंदिर मस्जिदों की बात।
बदल जाए मेरा भारत ..हां मेरा देश भारत।
गूँजे ध्वनि प्रखर ....चहुँमुखी विकास की ।
भारत के जवान की.... भारत के किसान की।