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Vijayta Suri

Inspirational

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Vijayta Suri

Inspirational

ख्वाहिश

ख्वाहिश

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ना जाने क्यों ....

तुम्हारे शब्दों में मेरे भावों की बू आती है।

सुलग रहे तुम भी उसी आग में ।

जो सिस्टम के प्रति मुझे सुलगाती है।

कुछ तो हल हो इस नामुराद आग का।

मजबूरियों का दामन थामे ।

मेरे बेबस दिल ए लाचार का।


काश ! लग जाए मेरे हाथ।

कोई अलादीन का चिराग।

उड़ा दूं सारे तहखानों की दौलतें।

अमीरों की औकात... ।

कर दूं अमीर सब लाचार बेबसों को।

उड़ा दूं जात पात... ज़हरीले भेदभावों को।


खुशियां हो चहुं ओर.. पीड़ा का हो निदान।

पूजा हो इंसानियत की .....

न हो मंदिर मस्जिदों की बात।

बदल जाए मेरा भारत ..हां मेरा देश भारत।

गूँजे ध्वनि प्रखर ....चहुँमुखी विकास की ।

भारत के जवान की.... भारत के किसान की।




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