हाँ अब खुद को बदलना होगा
हाँ अब खुद को बदलना होगा
वक्त आ गया है अब खुद को बदलना होगा
मौन रहकर भीतर ही भीतर न तड़पना होगा।
कच्ची मिट्टी से बना है ढांचा तेरा
तुझे संघर्ष के अलाव में तपना होगा।
तू ड़र मत आँधियों के आने से
तुझे कहाँ तक झुकना बस यह समझना होगा।
वीराने में कब तलक देखोगे रास्ता बहार का
गुलशन खिला रहे।
तुम्हें सदाबहार पुष्पों को चुनना होगा
बगावत करनी होगी खुद की सोच से।
यूं पशेमान शुन्य सा जीवन न जीना होगा।
रिसते रहें मुसलसल जख्म भले भीतर ही भीतर।
पर बाहर मुस्कुरा कर सबसे गले मिलना होगा
इच्छाओं की आग में न झोंक देना खुद को।
निस्वार्थ भाव से अभिप्रायों को चुनना होगा
सपनों के क्षितिज बहुत लम्बें चौड़े हैं।
बिना ठहरे ही मुसलसल सफर तय करना होगा।
