बिटिया की पुकार
बिटिया की पुकार
मैं अजन्मी अवांछित कन्या भ्रूण
बार-बार मिटाने पर भी
आ ही जाती हूँ
उग जाती हूँ......
कैक्टस' की तरह
बिना पानी बिना खाद !
उपेक्षित असुरक्षित
हर बार धिक्कारी जाती हूँ।
अपने ही जीवन दाता के हाथों....
मैं 'क्यों नकारी जाती हूँ ?
मैं पूछती हूँ ?
मेरे पैदा होने पर इतना बवाल क्यों ?
मुझे जन्म देने पर माँ से इतने सवाल क्यों ?
क्या ? क्या... मैं अपनी इच्छा से आई ?
नहीं न ?
तूने ही रोपा... मुझे माँ की कोख में
फिर मुझे मिटाने का यह अथक प्रयास क्यों ?
यह अथक प्रयास क्यों ?
तुम मुझे प्रसन्नता से
धरा पर लाकर तो देखो
मैं कमजोर नहीं ना ही अबला हूँ...
मुझ में छुपी झाँसी,
मुझपे कल्पना, मैं सबला हूँ !
ले लेने दो मुझे जन्म...
जरा शान से।
पकड़ा कर कलम मेरे हाथों में
भर देना तुम मुझे ज्ञान से।
बना देना गुणी.......
मै भर दूँगी तुझे 'आत्मसम्मान' से !
नहीं झुकने दूँगी ...तेरे मान को मैं 'बाबा' !
तेरी 'प्रतिष्ठा' होगी मुझे...
बढ़कर अपनी 'जान' .... से !
'बेटों को भी न मात कर दूँ'..?
अगर ..बेटों को भी न मात कर दूँ ?
तो 'तू' ..मुझे मार देना फिर से 'कोख' में।
'एक मौका' ' बस 'एक मौका' देकर तो देख।
अगर हस्ताक्षर ना बदल दूँ
तेरे लेख के ....
हस्ताक्षर ना बदल दूँ तेरे लेख....।।