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Vijayta Suri

Drama

5.0  

Vijayta Suri

Drama

बिटिया की पुकार

बिटिया की पुकार

1 min
505


मैं अजन्मी अवांछित कन्या भ्रूण

बार-बार मिटाने पर भी

आ ही जाती हूँ

उग जाती हूँ......

कैक्टस' की तरह

बिना पानी बिना खाद !


उपेक्षित असुरक्षित

हर बार धिक्कारी जाती हूँ।

अपने ही जीवन दाता के हाथों....

मैं 'क्यों नकारी जाती हूँ ?


मैं पूछती हूँ ?

मेरे पैदा होने पर इतना बवाल क्यों ?

मुझे जन्म देने पर माँ से इतने सवाल क्यों ?

क्या ? क्या... मैं अपनी इच्छा से आई ?

नहीं न ?


तूने ही रोपा... मुझे माँ की कोख में

फिर मुझे मिटाने का यह अथक प्रयास क्यों ?

यह अथक प्रयास क्यों ?


तुम मुझे प्रसन्नता से

धरा पर लाकर तो देखो

मैं कमजोर नहीं ना ही अबला हूँ...

मुझ में छुपी झाँसी,

मुझपे कल्पना, मैं सबला हूँ !


ले लेने दो मुझे जन्म...

जरा शान से।

पकड़ा कर कलम मेरे हाथों में

भर देना तुम मुझे ज्ञान से।


बना देना गुणी.......

मै भर दूँगी तुझे 'आत्मसम्मान' से !

नहीं झुकने दूँगी ...तेरे मान को मैं 'बाबा' !

तेरी 'प्रतिष्ठा' होगी मुझे...

बढ़कर अपनी 'जान' .... से !


'बेटों को भी न मात कर दूँ'..?

अगर ..बेटों को भी न मात कर दूँ ?

तो 'तू' ..मुझे मार देना फिर से 'कोख' में।

'एक मौका' ' बस 'एक मौका' देकर तो देख।


अगर हस्ताक्षर ना बदल दूँ

तेरे लेख के ....

हस्ताक्षर ना बदल दूँ तेरे लेख....।।


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