तो.....कविता बनती है
तो.....कविता बनती है
आसमान में खिला चाँद
जब पानी में उतरता है
मूक बादल जब
कोहरे में सिमटता है।
झिलमिल सितारा
जब टूट के बिखरता है
और बिखरे गुलाब़
जब हृदय पटल पर सजा लो,
तो..... कविता बनती है
रेत पर जब
नदी ठहरती है
गीले पाँव छूके।
जब कोई हवा गुुुज़रती है
दिवाली के दीये में
जब होली के रंग झलके
और इन्द्रधनुष के डोर खींच
जब मोर नचा लो
तो.....कविता बनती है।
कविता एक सरिता है
शब्द में जब
भाव चिपकते हैं
और स्याही से उतरते हैं
तो.....कविता बनती है।
