गुरू
गुरू
मात- पिता संग गुरू ही जग में
उनका करों सम्मान
कोरी किताब सा होता जीवन
गुरू ही देता आकार।।
निश्छल होता गुरू का जीवन
ग्यान का खुल्ला द्वार
हर कोई होता उसका बच्चा
समान सबसे प्यार।।
भगवान से बडा़ है दर्जा गुरू का
नैया लगाता पार
भगवान से भी गुरू मिलता
जो भवसागर से दे तार।।
