शालिनी मोहन
Abstract
किताबों के ढेर के
बीच से खींची हुई
एक मनपसंद किताब।
और ढेर से गिरी,
फैली कुछ किताबें
कविता और कहानी के मध्य
महीन रेखा को
दर्शाती है,
उनके आवरण पर
ऋतुएँ अपना नाम
लिख जाती हैं।
प्रस्तुति
साड़ी में लिपट...
दहेज़
अख़बार
मन एक पंछी
समीकरण
नाम
मंदबुद्धि
मूर्ख दिवस
बुढ़ापा
भिक्षुक बन दर-दर मैं भटका, मिल न सका कोई ठिकाना भिक्षुक बन दर-दर मैं भटका, मिल न सका कोई ठिकाना
मेरे प्यार से मिलने की दुआ दीजे दर्द का कारोबार है, साईं ! मेरे प्यार से मिलने की दुआ दीजे दर्द का कारोबार है, साईं !
मानव जैसे मानव रहा ही नहीं बस मशीन बन रहा है, मानव जैसे मानव रहा ही नहीं बस मशीन बन रहा है,
दोस्ती कोई सितार नहीं, पायल की झंकार नहीं, दोस्ती कोई सितार नहीं, पायल की झंकार नहीं,
हम सब भारतीय हैं बस यही गीत गुनगुनाना है। हम सब भारतीय हैं बस यही गीत गुनगुनाना है।
आशिकी में होश इतना भी नहीं लुटता रहा आ गया औकात पर उस शक्ल को तो देखिए। आशिकी में होश इतना भी नहीं लुटता रहा आ गया औकात पर उस शक्ल को तो देखिए।
इन कोमल नेत्रों से वही अश्रु उत्पन्न करते हैं हलचल उस ठहरे हुए मन में। इन कोमल नेत्रों से वही अश्रु उत्पन्न करते हैं हलचल उस ठहरे हुए मन में।
न ज़मी ख़ाली है न ये आसमां ख़ाली बस बचा है मेरे दिल का मकां ख़ाली। न ज़मी ख़ाली है न ये आसमां ख़ाली बस बचा है मेरे दिल का मकां ख़ाली।
लोग रूठने लगे है। रिश्ते टूटने लगे हैं। लोग रूठने लगे है। रिश्ते टूटने लगे हैं।
आज़ाद आया आज़ाद जाने की जिद में। मार कनपटी पर गोली सबको चौकाया था। आज़ाद आया आज़ाद जाने की जिद में। मार कनपटी पर गोली सबको चौकाया था।
कभी बंद आँखों से साफ नक़्श देखा शर्मशार बेगानो से बचा एक अक़्स देखा। कभी बंद आँखों से साफ नक़्श देखा शर्मशार बेगानो से बचा एक अक़्स देखा।
झूलों के संग मन आनंदित हो जाये, मिलजुल सब कजरी गा ले। झूलों के संग मन आनंदित हो जाये, मिलजुल सब कजरी गा ले।
हमेशा ख़ुशी माँगी जिसके लिए वही काटे शाखें अलग बात है, हमेशा ख़ुशी माँगी जिसके लिए वही काटे शाखें अलग बात है,
कोई कहता कुछ न बोलो, तो कोई दिल खोल कर कहो। कोई कहता कुछ न बोलो, तो कोई दिल खोल कर कहो।
क्यों वंचित रह गया उन सपनों से मेरे सपनों का सफर कुछ ऐसा था ! क्यों वंचित रह गया उन सपनों से मेरे सपनों का सफर कुछ ऐसा था !
मुकम्मल ज़िन्दगी का ख़्वाब नहीं कभी पूरा होता है. मुकम्मल ज़िन्दगी का ख़्वाब नहीं कभी पूरा होता है.
कहीं जिंदगी है मेरी, तन्हा.... नहीं मगर, उलफते दौर से गुज़र रहा हूं मैं. कहीं जिंदगी है मेरी, तन्हा.... नहीं मगर, उलफते दौर से गुज़र रहा हूं मैं.
अपना नज़रिया बदल दिमाग से नहीं दिल से आज़मा अपना नज़रिया बदल दिमाग से नहीं दिल से आज़मा
कुछ कर गुज़रने की चाह ही तो, जिंदगी का सफर तय करती है। कुछ कर गुज़रने की चाह ही तो, जिंदगी का सफर तय करती है।
आशीषों के सुंदर सुमन झरेंगे प्रेम राग का अलि गुंजार करेंगे। आशीषों के सुंदर सुमन झरेंगे प्रेम राग का अलि गुंजार करेंगे।