बुढ़ापा
बुढ़ापा
उम्र तो एक संख्या है
गणित का खेल ही सही
ढ़ल जाती है कभी न कभी
ढलने से इसे रोको अभी।
बन गई है क्यों लाचार अभी
अपनों ने भी किया विचार नहीं
दूर तक जो चली थी थामे कभी
थमने से इसे रोको बस अभी।
जब धूप थी तो ये छाँव बनी
अब छाँव है तो धूप चली
बाँधो न इसे, बँध जाओ
बँधकर के सँभल जाओ।
गिर गये, उठ न पाओगे
अपनों से ही लजाओगे
दहलीज़ पे खड़ी इस उम्र को
जाने न दो दरवाजे़ से।
जो चली गई दरवाज़े से
फिर चौखट भी शरमायेगी।