STORYMIRROR

शालिनी मोहन

Abstract

4  

शालिनी मोहन

Abstract

साड़ी में लिपटी नारी

साड़ी में लिपटी नारी

1 min
516

क्या सादगी

चेहरे पर उसके छाई है

जैसे पूस के महीने में

धूप मन को भायी है

सीमाओं में बँधी

असीमितताओं को समेटे

लो साड़ी में आ गई

नारी एक लिपटी।


आई तो सबको बाँध लिया

बेटी को इसने नाम दिया

जा कर भी सबको बाँध दिया

बहू से घर को आबाद किया

बँध गई जिसने भी बाँध दिया

सूनी कलाई को है नाम दिया

अपने घने केसू से

सारे घर में है छाँव किया।


स से सबल, प्र से प्रबल

म से ममता को निस्सार किया

अपने नयन के बूँदों से

प्यार से है सबको थाम लिया

कर्म को ही धर्म समझा

लोभ से हमेंशा रही दूर

मेहनत की पराकाष्ठा कर दी

कभी न इसका हुआ ग़ुरुर।


बारिश की निरंतर बूँदें भी

इस चट्टान को ना पिघला सकी

बनी, मिटी, मिट के बनी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract