राम धुन अनमोल है
राम धुन अनमोल है


1.
भोर हुई है सांझ में, अब नहीं फिर सोना है।
अब गर सोए भोर न होगी फिर तो फिर पछताना है।
2.
यह जग तो एक माया है, झूठी तेरी काया है।
पल-पल का जप आचरण कर, नहीं तो जीवन जाया है।
3.
सात्विकी कर जीवन तेरा, फिर शरण में आना है।
श्रेय को गर सिद्ध किया तब, अक्षय पुण्य कमाना है।
4.
अहेतु क्यों उलझ रहा है, जग तो सबका पराया है।
अब तो सुमिरन कर ले बंधु, लंबा समय गंवाया/ बिताया है।
5.
राम नाम की अलख जगाकर, भक्तों ने सुलझाया है।
अब तो सुमिरन कर ले बंधु, लंबा समय गँवाया/ बिताया है।
6.
क्षणभंगुर संसार में, नित्य निरंतर राम है।
चिन्मय सत्ता राम की, प्रभुपाद ही धाम है।
7.
अलख जगी है राम की, उपकृत यह संसार है।
सरल सहज विज्ञान बंधु, नहीं कोई विकार है।
8.
मन को मौन कर ले बंधु, प्रभु कृपा हो जाएगी।
सेवा की जब अलख जगेगी, शरणागति हो जाएगी।
9.
तन-मन में जब कांति आती, चैतन्य परिष्कृत होता है।
भगवत स्वरूप में स्वयं का, आध्यात्मिक दर्शन होता है।
10.
मोक्ष की तू आस लगा ले, पुण्य मोल अनमोल है।
त्वरित ही तर जाएगा, शाश्वत सत्य अनमोल है।
11.
तमस में गर फंसा रहा, क्या उचित क्या अनुचित है।
सात्विकता हो आचरण, करता यही प्रसन्नचित्त है।
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तन-मन में जब कांति आती, आत्मा परिष्कृत होती है।
भगवत स्वरूप में स्वयं की, निर्मल अनुभूति होती है।
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तन-मन में जब कांति आती, चैतन्य परिष्कृत होता है।
भगवत स्वरूप में स्वयं का, त्वरित विस्तार होता है।
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सत्संग का प्रताप देखो।
मुक्ति द्वार खुला दिखता है।
साधना की शक्ति देखो।
जीवन धन्य हुआ लगता है।
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प्रभु ने थामा है हाथ सबका ।
भक्तों ने गाई भक्ति की महिमा।
अंदर बाहर भेद मिटा सब।
नए अध्याय की अलख जगी अब।
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अंतस में जब मन रमता है।
अटूट निष्ठा में मन भरता है।
चराचर में तन रहता है।
कमल-सा कीचड़ में खिलता है।
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छंद गाए दोहे सजाए।
जग में खूब वाहवाही पाए।
भक्ति सिंधु में ना डुबकी लगाए।
बस तैर-तैरकर मन बहलाए।
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राम धुन अनमोल है।