भरोसा
भरोसा
ये शेर-ओ-शायरी, अदब के भरोसे
मैं कब तक बैठूंगा इस सब के भरोसे
वक़्त है बदलने का रुख अपना,
ना छुपूं खुद से किसी डर के भरोसे।
उम्मीद के दिए जलाने हैं अब,
ना जी लूं बस अंधेरों के भरोसे।
सपनों को पंख देना सीखना होगा,
ना गुनगुनाऊं बस हवाओं के भरोसे।
ये जो दर्द है, ये जो खुशी है मेरी,
क्यों छोड़ूं इन्हें, बस नसीब के भरोसे?
जो खुद लिखी है क़लम से तक़दीर,
ना जीऊं बस उनकी बातों के भरोसे।
मैं हूं सफर में अपने जज़्बों के साथ,
ना रुकूं बस किसी साथी के भरोसे।
मुझे खुद से मिलना है अब दोस्तों,
ना जीना बस उन ग़म के भरोसे।
जिंदगी एक दरिया है बहती हुई,
क्यों ठहरूं मैं किसी साहिल के भरोसे?
खुद को तलाशना है मुझको अभी,
ना खो जाऊं किसी मंज़िल के भरोसे।
हर ख्वाब में बसा है एक अक्स मेरा,
क्यों रहूं मैं बस किसी पल के भरोसे?
ये जहां, ये फलक, ये सितारे सभी,
मैं भी हूं इनसे बड़े हौसले के भरोसे।
हर इंक़लाब मुझसे होकर गुजरेगा,
ना झुकूं किसी ताकत के भरोसे।
अपने हाथों से दुनिया संवारूंगा,
ना जीऊं बस किसी क़िस्मत के भरोसे।
मेरा सफर है, मेरी मंज़िल भी मैं,
ना सोचूं किसी और के सहारे के भरोसे।
हर रात के बाद सवेरा मैं लाऊंगा,
खुद पर रखूं एतबार के भरोसे।
ये शेर-ओ-शायरी, अदब के भरोसे
अब लिखूंगा जिंदगी अपने हौसले के भरोसे।
क़लम में जला दूंगा नया एक जहां,
और छोड़ूंगा आसमान के भरोसे!
