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Bhawna Kukreti Pandey

Abstract

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Bhawna Kukreti Pandey

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समिधा जीव

समिधा जीव

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संसार 

माया का 

आंगन।


उम्र के

सर्द मौसमों में 

जीवन की धूनी में 

सुलगता हाड़

समय के आलोक में 

स्वप्न को जब 

ठिठका 

देखता है,

कांपते कर्म

के हाथों से पकड़ कर

ले आता हैं उन्हें

आंच की गर्माहट के

करीब।


अनायास कभी

कभी सतत प्रयास में 

ये स्वप्न 

कभी फिसल कर

भस्म हो जाते हैं

और कभी निकल जाते

अपने पथ पर

पा कर ऊष्मा 

नष्ट होते शरीर की

अपनी 

मंजिल की ओर।


मगर अंत में

न हाड़ रहता है

न स्वप्न की मंजिल 

साक्षी बनती 

है सिर्फ माया

उनके होने की

हमेशा 

अपनी "समिधा" 

जीव को संसार में 

लाते बटोरते हुए।


क्योंकि 

जो अंत है 

माया का 

वो ही प्रारंभ है 

माया का।


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