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Kaushik Dave

Abstract

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Kaushik Dave

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गिरगिट

गिरगिट

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आज गिरगिट ऐसा बोला

सुनकर दंग रह जाओगे


अबतक रंग बदलता था मैं!

अब रंग बदलना छोड़ दिया


अब रंग बदलना छोड़ दिया

आदमी बदलता है रंग ज्यादा!


ऐसा रंग हमने न देखा है!

पूरब जाओगे या पश्चिम!


नेताजी के नये नये रंग

देखकर सब पछताओगे!


गिरगिट तो एक बहाना है

काहे को बदनाम करते हो<

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हमतो रेंगने वाले जीव

बचने के लिए रंग बदलते है


इन्सान के रंग रूप हजार

घड़ी घडी रंग बदलते है


विश्वास करते रहो ऐसे रंगों पर

लगता है इलेक्शन नज़दीक आया है


हाथों में चांद दिखा कर

अपनी कोठी भरते जाते हैं


गिरगिट तो एक बहाना है

हमारा रंग भी फीका पड़ जाता है

हमारा भी रंग फीका पड़ जाता है।



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