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Payal Khanna

Abstract

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Payal Khanna

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वह शाम का समय

वह शाम का समय

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सूरज ढला, शाम हुई ,

देख लालिमा अंबर में आंखों को राहत मिली

जैसे जैसे अंधेरा हुआ चांद का काम शुरू हुआ

रोशनी चांद सितारों की उजाला कर गई हमारे अंतर्मन में भी

शाम हुई सब इंतजार करने लगे

चाय के लिए सब व्याकुल होने लगे

चाय बनी गरम-गरम

सबको पी के चाय एक सुकून भरी राहत मिली

कहीं होने लगी खाने की तैयारियां

तो कहीं शुरू हुई सुननी दादी मां की कहानियां


कहीं बच्चों ने खेल के मचाया शोर

तो कहीं बारिश के मौसम में नाचा मोर

कहीं से आती खुशबू खाने की

तो कहीं से महकती खुशबू सुंदर फूलों की

आसमान में चिड़ियों का उड़ता काफिला देखा

तो धरती में चमकते हुए घरों का उजाला देखा 

कहीं बनते शाम के चाट पकोड़े

तो कहीं रोते बच्चे छोटे-छोटे

कहीं बजती मंदिरों की घंटियाँ

तो कहीं चालू होती गिन्नी रात की घड़ियां

कहीं होता कीर्तन का आगाज

तो कहीं होता दोस्तों का मिलाप

कहीं मीठी मीठी होती बच्चों की शरारतें हैं

तो कहीं हो रही खाने की फरमाइश है

चाहे जितना भी कोई हो दूर या पास

शाम का समय है सबके लिए ही बहुत खास

शाम का समय है सबके लिए ही बहुत खास ।।


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