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Chinmaya Kumar Nayak

Abstract

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Chinmaya Kumar Nayak

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ओ बापू !

ओ बापू !

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इस बार अंग्रेजो से नहीं

खुदसे लड़ने की हमें उपाय बताना

फिर से बंध चुके हैं खुद ही खुद से

अब हमें मुक्ति दिलाने के लिए

ओ बापू तुम फिर आना......


सत्य उलझ चुका है झूठ की अंधेर में

प्रेम बदल गया है समय की कटघरे में

हिंसा की जलती हुई समंदर से

आजादी दिलाने के लिए

ओ बापू तुम फिर आना......


तीन बंदर आज मूरत बनकर रहगये हैं

तुम्हारी लाठी आज गरीबों पर चलरहा है

कपड़े छोटी है आज महिलाओं की तन पर

उनकी इज्जत लौटाने के लिए

ओ बापू तुम फिर आना......


तुम आज दीवारों की शोभा बन गए हो

नॉट पर तुम एक सितारा बन गए हो

आज लोग तुमसे भी समझदार हो चुके हैं

उनको अच्छे से समझाने के लिए

ओ बापू तुम फिर आना......


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