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Chinmaya Kumar Nayak

Abstract Others

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Chinmaya Kumar Nayak

Abstract Others

पापा

पापा

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अपनी हर इच्छाओं को त्याग कर

अपनी हर सपनों को तोड़ कर

वो उनकी हिस्से की हंसी हमें सौंप देते हैं 

पापा खुद के लिए नहीं, हमारे लिए जीते हैं।


आदर्श और विचारों की पाठ पढ़ाकर

हमें डट के जीने की नुस्खे बताकर

वो अपने आंसुओं को आँखों में ही दबा लेते हैं

पापा खुद के लिए नहीं, हमारे लिए जीते हैं।


हमें लायक बनाकर एक छोटी उम्मीद से

दूर नहीं करेंगे खुद से उनकी ढलती उम्र से

बड़े होते ही क्यों हम इतनी खुदगर्ज बन जाते हैं

पापा खुद के लिए नहीं, हमारे लिए जीते हैं।


अपनी कन्धों से हमारी बोझ उठाकर

हमारी हार जीत में हमें संभाल कर

वो हमारे अन्दर शायद खुद जी लेते हैं

पापा खुद के लिए नहीं, हमारे लिए जीते हैं।


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