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Indra narayan Rai

Abstract

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Indra narayan Rai

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प्रीत

प्रीत

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तुझसे अविराम अनवरत 

अपरिमित प्रीत हुई 

चित्त की एक अद्भुत रहस्य मय प्रीत !


गरिमा महिमा से अति दूर 

स्वच्छंद सीमा -विहीन

अनन्त असीम अगम 

चिदाकाश का उन्मुक्त पंथ 

जीवन मरण की परिधि से परे 


सूर्य सा प्रखर, चन्द्र सा शीतल 

अवरोध विहीन, कुण्ठा रहित 

धर्म -जाति, ऊँच -नीच की छाँव से सुदूर

पर अति निर्मोही,  हठी भी यह 

अश्म सा कठोर, बर्फ सा द्रवित 

सदैव गतिशील प्रीत !


गरल में अमिय के दर्शन 

परवाह नहीं सुयश - कुयश की

जलाशय की भाँति स्पन्दित

गिरतीं-उठतीं भावों की लहरें 


सपनों की बारात सजाती प्रीत 

अविराम लीन चित्तवासी में 

आराध्य की आराधना में युक्त 

हास- रुदन, मोद -प्रमोद का अद्भुत मिश्रण

आलिंगन और उत्सर्ग का स्वरूप 

प्रीत ! प्रीत !   प्रीत !

आओ प्रियतम प्रीत करें ! 

आओ प्रियतम प्रीत करें !


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