प्रीत
प्रीत


तुझसे अविराम अनवरत
अपरिमित प्रीत हुई
चित्त की एक अद्भुत रहस्य मय प्रीत !
गरिमा महिमा से अति दूर
स्वच्छंद सीमा -विहीन
अनन्त असीम अगम
चिदाकाश का उन्मुक्त पंथ
जीवन मरण की परिधि से परे
सूर्य सा प्रखर, चन्द्र सा शीतल
अवरोध विहीन, कुण्ठा रहित
धर्म -जाति, ऊँच -नीच की छाँव से सुदूर
पर अति निर्मोही, हठी भी यह
अश्म सा कठोर, बर्फ सा द्रवित
सदैव गतिशील प्र
ीत !
गरल में अमिय के दर्शन
परवाह नहीं सुयश - कुयश की
जलाशय की भाँति स्पन्दित
गिरतीं-उठतीं भावों की लहरें
सपनों की बारात सजाती प्रीत
अविराम लीन चित्तवासी में
आराध्य की आराधना में युक्त
हास- रुदन, मोद -प्रमोद का अद्भुत मिश्रण
आलिंगन और उत्सर्ग का स्वरूप
प्रीत ! प्रीत ! प्रीत !
आओ प्रियतम प्रीत करें !
आओ प्रियतम प्रीत करें !