अपराध क्षमापन
अपराध क्षमापन
हृदय पटल में प्रभु की छवि पर ,
भाव पुष्प रख देता हूँ ।
चरण धूल सर पर धारण कर,
नाम सदा जप लेता हूँ ।
नाथ दया रखना दुखिया पर ,
दास सदा से हूँ स्वामी ।
कृपादृष्टि मुझपर नित रखना,
दुःख हरण अन्तर्यामी ।
श्वास- श्वास में तू हो बसते ,
जीवन सब तुझसे पाता ।
पत्ता पत्ता डोले स्वामी ,
जब आज्ञा देते दाता ।
तू हो कर्ता धर्ता हर्ता ,
तेरे हाथों सब हारा ।
कर्म सभी जो होवे प्रभु जी,
तुझे समर्पित है सारा ।
कौन यहाँ पर सदा है रहता ,
आता है फिर जाता है ।
यह जग सारा कर्म क्षेत्र है ,
जो करता फल पाता है ।
क्षमा करो अपराध हुए जो,
दुःख हरो जो भी मेरे ।
त्राहि त्राहि है दास 'इन्द्र ' की ,
शरणागत स्वामी तेरे ।