"मायामयी प्रकृति "
"मायामयी प्रकृति "
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पल्लव किसलय दल फूलों से ,
सतरंगी प्रकृति प्यारी ।
चारु चन्द्रिका बिखरी फैली ,
अनुपम है शोभा न्यारी ।।
विविध स्वरों के प्रिय सरगम से ,
जग लगता अनुराग भरा ।
सभी यहाँ पर स्वप्न देखते ,
पर लगता कितना है खरा ।।
वसुधा के आँचल में देखो ,
विविध जीव हैं खेल रहे ।
कुछ तो जग के जंजालों को,
रोकर- हँसकर झेल रहे ।।
सुख -दुख के भावों में उलझे,
मधुर रागिनी भूल रहे ।
लुभा रही मोहन की माया ,
मोह- पाश में झूल रहे ।।