STORYMIRROR

Chandresh Kumar Chhatlani

Abstract

4  

Chandresh Kumar Chhatlani

Abstract

वर्ष का भूला हुआ पल

वर्ष का भूला हुआ पल

1 min
397

दौड़ रहा था इस साल भी समय , 

उसमें से एक पल फिसल गया,

वह उठा फिर आग की किसी लपट की तरह,

और राख के ऊपर नाचता रहा।


उस पल में उठे थे कितने ही झंडे ऊँचे,

किसी सूर्य के अंदर के बदलाव के सपने।

उस आंदोलन के गीत को खामोशी ने निगल लिया,

और, वह पल भी राख का कण बन गया।


क्योंकि, दुनिया को भार लगता है - आलिंगन भी,

तो उत्साह भी संदेह और भय की फुसफुसाहट से प्रेरित हो,

वर्ष के भूले हुए उस पल को गंगा में विसर्जित कर देता है।


और तब,

इतिहास की खूबसूरत दीवार पर छाया सा वह पल,

मानव कीमत पर मानव की मत बात रख कहता है।

और, यही सुनकर, मैं चुप हो गया - तुम्हारी तरह। 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract