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Pramesh Deep

Abstract

4  

Pramesh Deep

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मत कर प्यार इतना

मत कर प्यार इतना

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मिट्टी के इस काया से मत कर प्यार इतना 

छोड़ के पड़ेगा जाना इसे इतरा मत इतना


तेरा मेरा कुछ नहीं सब कुछ माटी का ढेला

जग में जीवन-मरण का लगा है रेलम-पेला

छोड़ के पड़ेगा जाना इसे इतरा मत इतना

मिट्टी के इस काया से मत कर प्यार इतना 


माना इसे संवारने में बीता दिया उम्र सारी

बेवकूफी में गुजर रहा है अब जीवन सारी

छोड़ दे इसका मोह, समय बचा हैं कितना 

मिट्टी के इस काया से मत कर प्यार इतना 


इसके सज-धज में समय कर रहा खोटी

समय में बंदे क्या खायेगा तू सुखी रोटी

धरम-करम कर ले सांसे बाकी है जितना

मिट्टी के इस काया से मत कर प्यार इतना 


जो-जो आता है जग, उसे जाना पड़ता है

भगवान भी आकर यहाँ, कहाँ ठहरता है

लाग ना लगा जग से, रहना तुझे है कितना

मिट्टी के इस काया से मत कर प्यार इतना


मेरा-मेरा के चक्कर में पीस रहे है लोग

जैसा कर्म किया वैसे फल अब तू भोग

अहंकार में मिट गये सिकंदर थे जितना 

मिट्टी के इस काया से मत कर प्यार इतना 



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