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Pramesh Deep

Abstract

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Pramesh Deep

Abstract

कोई ख़्वाबों मे आने लगता है

कोई ख़्वाबों मे आने लगता है

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अरमानो की जब कलियाँ खिलने लगता है

सपने भी जब हकीकत में दिखने लगता है

मन जब मन ही मन ख्वाब सजाने लगता है 

तब धीरे-धीरे कोई ख़्वाबों मे आने लगता है


बसंत जब-जब जग में आने आतुर होता है

पतझड़ के बाद ही बहार का मौसम होता है

जब मधुबन सदा सुहावना सा प्रतीत होता है

तब धीरे-धीरे कोई दिल मे समाने लगता है


मन का मयूरा जब-जब मगन हो झूमता है

निर्मल पवन जब धरा का आँचल चूमता है

अंबर से धरा पर जब प्रेम की धारा बहता है 

तब धीरे-धीरे कोई कानों में कुछ कहता है


अमुवा की हर मौर मन को लुभाने लगता है

पलाश की फूल से दिल डगमगाने लगता है

मौसमी खुमार जब तन-मन को सुहाता है

तब धीरे-धीरे किसकी याद सताने लगता है


आओ इस बयार में हम सब भी बह जाये

मन की बातें अपने साथी को भी कह जाये

जब एक की बातें दूजे को भी भाने लगता है 

धीरे-धीरे तन्हाई का आलम अच्छा लगता है!


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